Tuesday, July 20, 2021

अनवर नदीम (1937-2017) की दो ग़ज़लें (हम्द)

आज की रोटी तूने दे दी, देने वाला कल भी तू 

कैसी उलझन, कैसी मुश्किल, हर मुश्किल का हल भी तू 


खून के छींटे, फूल की ख़ुशबू, रात में दिन, और दिन में रात 

हाल से माज़ी तक सब तेरा, आने वाला पल भी तू 


पानी, मिट्टी, बीज भी तेरे, मेरा सारा कसबल तू 

शाख़ें, पत्ती, ज़ीरा तू है, खट्टा-मीठा फल भी तू 


मुफ़लिस बच्चे के होटों पर, हस्ती की मुस्कान है तू 

और किसी बेवा के सर पर, पाकीज़ा आँचल भी तू 


काजल, संदल, बादल तेरे, शेर-ो-सुख़न सब तेरा है 

'अनवर' कैसे कह दे या रब ! दुन्या में कुछ मेरा है ! 


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किस हाल में रहते हैं ख़बर है तो उसी को 

देता है वही सब्र की ताक़त भी सभी को 


हर हाल में रखता है वही साबिर-ो-शाकिर 

वो छीन भी लेता है कभी मेरी ख़ुशी को 


वो ख़ूब समझता है ख़ुदाई के तक़ाज़े 

रखता नहीं बेकार ज़माने में किसी को 


वो ग़ैर को आमादा-ए-इख़लास करे है 

पूरी वही करता है महब्बत की कमी को 


वो चाहे तो हर पल को अबद-रंग बना दे 

मिट्टी में मिलाता है वही एक सदी को 


बस एक वही है मेरा हमराज़-ो-मददगार 

देखा है मेरे साथ कभी तुमने किसी को।