कुछ दायरे बनाये थे गाँधी के ज़िक्र ने
कुछ दायरे बनाये हैं गाँधी के ज़िक्र ने !
पहला दायरा
अँधेरा था बहुत गहरा, जहालत का, ग़ुलामी का
तसव्वुर की ख़राबी का , इरादों की तबाही का
ज़माना था वो ज़ुल्म-ो-ज़ोर की काफ़िर जवानी का
कोई मंज़र कोई मौक़ा नहीं था ख़ुशगुमानी का
ग़ुलामी कब सुनाती है किसी को प्यार का क़िस्सा
ये ज़ालिम दे नहीं सकती किसी हक़दार का हिस्सा
जहालत भी ग़ुलामी के सफ़र में साथ चलती है
बहुत ग़मगीन हालत में ये काली रात ढलती है
जहालत, ज़िंदगानी से उमंगें छीन लेती है
हमारे अंत को अपने भंवर मैं डाल देती है
ग़ुलामी को हटाने के जतन में थे कई पैकर
कफ़न-बरदोश सांसें थीं हमारे देश के अंदर
दूसरा दायरा
तहज़ीब का संसार सजाने को रहे याद
इक़दार की तौक़ीर बढ़ाने को रहे याद
हर दौर को रहती है हिदायत की ज़रुरत
तारीख़ का मक़सद भी ज़माने को रहे याद
गांधी ने ग़ुलामी से छुड़ाने के अमल में
लड़ने का तरीक़ा भी सिखाया था रहे याद
लानत वो छुआछूत की मिटटी में मिला दी
इस देश को मिटने से बचाया था, रहे याद
तीसरा दायरा
में हिंदुस्तान हूँ, मेरा जहां सब से निराला है
मिरे बच्चों ने, मेरे हौसले का दिल सम्भाला है
यहां ख़ुसरो , यहां चिश्ती, यहां गौतम, यहां गाँधी
सभी ने प्यार का सीधा सरल रास्ता निकाला है
में हिंदुस्तान हूँ, मेरा जहां सब से निराला है !
चौथा दायरा
जिस देश में सांसें लेते हैं , उस देश की बातें करना हैं
जिस देश में गंगा धरती पर ईमान की धारा बनती है
जिस देश के हर इक मंज़र से भगती के इशारे मिलते हैं
जिस देश में उल्फत रचती है इक ताजमहल के सपने को
जिस देश के नाज़ुक होटों से आवाज़ लता की गूंजे है
जिस देश की मिटटी सोना है, जिस देश में गाँधी जन्मे थे
जिस देश में सपने बांटे थे, गांधी के मुबारक जज़्बों ने
जिस देश की धरती जागी है तदबीर की मंज़िल पाने को
जिस देश के बाज़ू उठते हैं आकाश की सीमा छूने को
जिस देश के कोने कोने से गाँधी के निशाँ कुछ कहते है
जिस देश में गंगा बहती है, उस देश से गाँधी उभरे थे
जिस देश से गाँधी उभरे थे , उस देश की बातें करना हैं
मोहन दास करमचंद गाँधी
नाम था उस शोहरा-ए-आफ़ाक़ महात्मा का
जिस की अमर आत्मा ने
हिन्दुस्तान के इस शोहरतयाफ़्ता नारे को
अपने ख़ून से सुर्खरू कर दिया
"काम है मेरा तग़य्युर , नाम है मेरा शबाब
मेरा नारा, इंक़लाबो इंक़लाबो इंक़लाब - (जोश)
"अजूब-ए-रोज़गार गाँधी को
सारी दुन्या हैरत से देखती है
और बीसवीं सदी के
अक़्ल-ए-कुल (अल्बर्ट आइंस्टाइन ) के ख़याल में
"आने वाली नस्लें भी
गाँधी की बातें सुन के
हैरतज़दा रहेंगी "
गंगा, गाँधी और लता , प्यार मुहब्बत का संसार
गंगा से आसान हुआ , मानव जीवन का आधार
और लता के नग़मों से , सारा आलम है सरशार
दुनिया भर की क़ौमों पर गाँधी बाबा के उपकार !
- अनवर नदीम (1937-2017)