Friday, September 14, 2018

"हिंदी पखवाड़ा" | अनवर नदीम (1937-2017)


ये हिंदी का पखवाड़ा है, सब के मन को भाता है
भाषा के लिए होने वाले कुछ कामों को दर्शाता है 

हर साल इसी पखवाड़े में, कुछ बातें कहते सुनते हैं
जब लोग ज़रा ख़मोश हुए इक भाषा योगी बोल उठा
भाषा के दरख़तों से देखो कुछ पत्ते अक्सर गिरते हैं
वो सूखे पत्ते शब्दों के, आवारा बन के फिरते हैं
वो सूखे पत्ते रचना को क्या ताज़ा रूप दिलाएंगे
क्या बात करेंगे सपनों की, क्या मंज़िल तक ले जाएंगे
भाषा की लचकती शाख़ों पर, कुछ नाज़ुक पत्ते आते हैं
वो नाज़ुक पत्ते ह्रदय की हर हालत को दर्शाते हैं
क्या हिंदी, हिन्दू भाषा है? क्या उर्दू मुस्लिम भाषा है?
इन घटिया, चोर सवालों से क्या मुस्तक़बिल की आशा है
इस हिंदी के पखवाड़े में, उर्दू की बातें आम करो
तफ़रीक़ मिटाओ भाषा की, हर प्राणी को अब राम करो 

ये हिंदी का पखवाड़ा है, ये सब के मन को भाता है
भाषा के लिए होने वाले कुछ कामों को दर्शाता है 
 


- अनवर नदीम (1937-2017)

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