धरती का मुक़द्दर खोटा है, जन्नत का उतरना मुश्किल है
ये बात समझ में आ जाए तो सांस का लेना आसां हो
तूफ़ान बदन की अंदर है, लगता है मिटा के रख देगा
ये दुनिया हम पर हंसती है क्या ख़्वाब अछूता देखा है
बस ख़्वाब हमारा अपना है, इस ख़्वाब को ज़िन्दा रखना है
और ख़्वाब इशारा करता है दुनिया को बदल के रहना है
मैं ज़ुल्म-ो-सितम की दुनिया में रहता हूँ, रहूँगा सदियों तक
हाँ मेरी ज़बां कट जाएगी, ये बात मगर लाफ़ानी है
हर दौर में कुचला जाऊंगा, हर दौर में मारा जाऊंगा,
जब होंट हिलेंगे, कानों तक पैग़ाम यही तो जाएगा,
सच बोल के मरने वालों को, हर दौर में ज़िन्दा रहना है
हर दौर में ज़िन्दा रहना है सच बोल के मरने वालों को !
-अनवर नदीम (1937-2017)
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