मिलन की चंद घड़ियाँ ज़िंदगी आबाद करती हैं
जुदाई की तबाही ज़िंदगी बर्बाद करती है
मगर ये सच अधूरा है, हक़ीक़त और ही कुछ है
जुदाई बेकसों को दर्द की सौग़ात देती है
वही एहसास जो पैहम रवां रखता है हस्ती को
हमारी ज़िंदगी में हौसलों के गुल खिलाता है
हमें दीदी मुनी की ज़ात ने ये हौसला बख़्शा
की हम भी इल्म के पैग़ाम की ख़ातिर निकल आये
ज्ञान के फूलों से महकेगा समाज
दीदी पारुल का यही पैग़ाम है
काम ये करना है, करना चाहिए
ज्ञान के प्रकाश को फैलाएं हम !
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