Friday, August 27, 2021

"फ़ैसला" | अनवर नदीम (1937-2017) | "The Choice" | Anwar Nadeem (1937-2017) | Translation: Mehak Burza


सांस मिली है, जी सकते हैं

आंख मिली है, रो सकते हैं

दिल की बाज़ी हारो, जीतो

ख़ुशियों के अम्बार लगाओ

फिर भी इतनी बात तो जानो

अपने दिल से इतना पूछो

मेरे दौर के लोगो, सोचो

आने वाली नस्लें तुम से क्या पूछेंगी, इतना जानो

मेरे दौर के प्यारे लोगों, ठहरो, संभलो, जागो, सोचो


आने वाली नस्लें तुम पर नाज़ करें ये हो सकता है

आने वाली नस्लें तुम से लेकिन ये भी कह सकती हैं

तुम ने उन की रचना की है

तुम हो उनके असली दुश्मन

तुम ने उनको क़त्ल किया है

तुम ने उनको ज़हर दिया है

तुम ने बिफरे तूफ़ानों को

झूठ कपट से मोड़ दिया है

उजले रौशन इंसानों के

ख़्वाब का दर्पन तोड़ दिया है

तुम ने अपनी औलादों को

बीच अधर में छोड़ दिया है

आने वाली नस्लें तुम को

अपना क़ातिल ठहराएंगी

सांस मिली है, जी सकते हो

आँख खुली है, रो सकते हो


- अनवर नदीम (1937-2017)

The Choice


You have got breath, you can live,

You have got eyes, you can cry

Whether you win or lose the bettings of the heart

Or stack up happiness

Still you should know this much

O people of my era, ask your heart, think

What will the coming generations ask of you, think,

Dear people of my era, stop, be cautious, wake up and think


That coming generations will be proud of you is a possibility,

Yet they can tell you this

You have created them,

You are their real enemy

You have slain them,

You have poisoned them

You have diverted the troubled storms by your fraudulent guileless

You have broken the mirror of dreams that shone bright

You have left your children midway

The coming generations will

Declare you as their murderer

You have got breath, you can live,

You have your eyes open, you can cry


- Anwar Nadeem (1937-2017) | Translated by Mehak Burza




Saturday, August 14, 2021

"एक पुराना हल" | अनवर नदीम (1937-2017)


ये सच है कि 

मसाइल हमें विरसे में मिले हैं 

मगर हम 

मसाइल को हल करने की कोशिश भी नहीं करते 

शायद उलझनों को सुलझाने का गुर 

हमें मालूम ही नहीं है।  

हालात यक़ीनन बहुत बुरे हैं 

क्यों न फिर यही किया जाये 

कि पड़ोसी हमें 

और हम पड़ोसी को उकसाएं 

ताकि बारूद 

नंगे मसाइल को 

अपनी चादर में लपेट ले।  

- अनवर नदीम (1937-2017) 

"मैं" | अनवर नदीम (1937-2017)


मैं वो हूँ जिसे तुम नहीं जानते

जिस का जानना तुम्हारे लिए ज़रूरी नहीं 

जो अजनबी है, न क़रीबी दोस्त 
जो दूर है, न पास 
जो मैं है, न तू

मैं वो हूँ जो तुम्हारी ही ज़ात में गुम है।  

- अनवर नदीम (1937-2017)



Sunday, August 8, 2021

सूरत-ए-हाल | अनवर नदीम (1937-2017)



बस वही नक़ाब, झूमर, लचका, गोटा, अफ़्शां और ग़रारा 

बस वही कवाब, कोफ़्ते, रोग़न जोश, चपाती, पराठे और बिरयानी 

बस वही तेज़, ख़ुशबूदार गर्ममसालों की दादागिरी 

बस वही शीरमाल, सिवईं और बालूशाही की जलवागिरी 

बस वही लंतरानी में बहुत कुछ छुपा लेने की कोशिश 

बस वही शीन, क़ाफ़ की फिसलन पर तमसख़ुर की बौछार 

बस वही सर्वजन बस्तियों में दूरियों के ख़तरनाक कांटे 

बस वही ग़ज़ल के पीछे उर्दू शाइरी का बहुत लम्बा क़ाफ़िला 

बस वही शेरी किताबों का ज़ख़ीरा, बेरूह ज़हनों का मुकालमा 

बस वही दस पन्द्रह मौज़ूआत, ग़ज़ल फ़ैक्टरी का सब कुछ 

बस वही थके हारे क़लम का अफ़सोसनाक अन्जाम 

बस वही ग़ज़ल से बेज़ार इल्म-ो-दानिश का रवय्या 

- अनवर नदीम (1937-2017)

 

Tuesday, July 20, 2021

अनवर नदीम (1937-2017) की दो ग़ज़लें (हम्द)

आज की रोटी तूने दे दी, देने वाला कल भी तू 

कैसी उलझन, कैसी मुश्किल, हर मुश्किल का हल भी तू 


खून के छींटे, फूल की ख़ुशबू, रात में दिन, और दिन में रात 

हाल से माज़ी तक सब तेरा, आने वाला पल भी तू 


पानी, मिट्टी, बीज भी तेरे, मेरा सारा कसबल तू 

शाख़ें, पत्ती, ज़ीरा तू है, खट्टा-मीठा फल भी तू 


मुफ़लिस बच्चे के होटों पर, हस्ती की मुस्कान है तू 

और किसी बेवा के सर पर, पाकीज़ा आँचल भी तू 


काजल, संदल, बादल तेरे, शेर-ो-सुख़न सब तेरा है 

'अनवर' कैसे कह दे या रब ! दुन्या में कुछ मेरा है ! 


********************************************************************

किस हाल में रहते हैं ख़बर है तो उसी को 

देता है वही सब्र की ताक़त भी सभी को 


हर हाल में रखता है वही साबिर-ो-शाकिर 

वो छीन भी लेता है कभी मेरी ख़ुशी को 


वो ख़ूब समझता है ख़ुदाई के तक़ाज़े 

रखता नहीं बेकार ज़माने में किसी को 


वो ग़ैर को आमादा-ए-इख़लास करे है 

पूरी वही करता है महब्बत की कमी को 


वो चाहे तो हर पल को अबद-रंग बना दे 

मिट्टी में मिलाता है वही एक सदी को 


बस एक वही है मेरा हमराज़-ो-मददगार 

देखा है मेरे साथ कभी तुमने किसी को।  

Saturday, June 19, 2021

جینے کا ہنر

 


جینے کا ہنر 

 

تہذیب کے سارے گلیارے 

پربات، سہرا، جنگل کے 

آج تلک ابھارے ہیں 

 

انسان کے نازک ذہنوں پر 

تاریخ کے روشن پننوں پر 

دریا کی عجب فنکاری ہے ! 

 

یہ بہتا پانی دھرتی کو 

ہر دور کی چابکدستے کو 

جینے کا ہنر سکھلاتا ہے !

 

سنسار کے جتنے دریا ہیں 

ساحل پی ان ہی کے زندہ ہیں 

جذبات کے سندر تاجمحل !

 

دریاؤں کی سارے جلدھارا 

لگتے ہے ہمیشہ بنجارا 

صدیوں کے سفر کا درپن ہے ! 

 

- انور ندیم (1937-2017)

 

 The Skill of Living or Life Skill

 

All corridors of civilization

Of mountains, deserts, and jungles

Are indebted till today!

 

On delicate human minds

And the bright pages of history

Rivers have left their unique artistic imprint!

 

This flowing water of rivers

Teaches the earth

The Art of enduring the whiplash of every age!

 

All civilizations of the world

Have thrived on river banks

These beautiful structures of our emotions!

 

The free flow of meandering rivers

Always appears nomadic

Mirroring our centuries-long journey!

 

-          Anwar Nadeem (1937-2017)

Translated from Urdu by Dr. Navras J. Aafreedi






"दर्द का मरहम" | अनवर नदीम (1937-2017)



यादें मीठी भी होती हैं 

यादें कड़वी भी होती हैं 

यादें जी बहला सकती हैं 

यादें मन तड़पा सकती हैं 

यादें हम को डस लेती हैं 

यादें अमृत भी लाती हैं 


जीवन के पेचीदा रिश्ते 

कांटे, पत्थर, जटियल, मैदां 

बोझल पैकर, ज़ख़्मी रूहें 

ख़ून ख़राबा, ठोकर, चोटें 

मंज़िल ऐसा प्यारा सपना 

जिस पर सारी दुनिया मरती 

सब की मंज़िल अब तक ओझल 

फिर भी इस की चाहत बेकल 


ओझल मंज़िल की राहों में 

ज़ख़्मी, चोटों के जंगल में 

यादों के मरहम से शायद 

मन के गहरे घाव भरेंगे ! 


यादें मीठी हो सकती हैं 

मरहम भी ठंडा होता है 

यादें कड़वी हो सकती हैं 

मरहम भी कुछ लग सकता है !


- अनवर नदीम (1937-2017)


Wednesday, March 10, 2021

"कैसी कही" | अनवर नदीम (1937-2017) | "How is it?" | Anwar Nadeem (1937-2017) | Translation: Ghulam Rizvi 'Gardish'



हमारे देश में हुकूमतें काम नहीं करतीं 

पार्टियां इलेक्शन लड़ती हैं 

चुनाव जीत के ऐश करती हैं 

और इलेक्शन हार के वबाल।  

- अनवर नदीम (1937-2017)

The governments do not function 

In our country 

The parties

After winning the elections 

Have a bed of roses - 

Orgies, animal gratifications, 

Passing days and nights 

In luxurious enjoyment!

And perchance - 

If they lose the elections

There's a wrangling jade - 

Infuriate,

Quarrelsome,

Pugnacious,

Inordinate,

They finally go to Jericho!

- Anwar Nadeem (1937-2017)

(Translated from Urdu by Ghulam Rizvi 'Gardish')



"मजबूरी" | अनवर नदीम (1937-2017) | "Compulsion" | Anwar Nadeem (1937-2017) | Translation: Ghulam Rizvi 'Gardish"



ऐसी दुन्या जिस में हम तुम 

ज़ुल्म-ो-सितम की चक्की में 

पिस्ते हैं और पिसकर भी हम 

शुक्र करें, मजबूरी है, 

ये कैसी मजबूरी है।  

- अनवर नदीम (1937-2017)

Compulsion

Such a wretched world 

Wherein 

We are ever grinded 

Between the two sides of a mill-stone

And even 

After the tedious process

Haplessly 

Thank God!

Shit! are we here 

Destined to constraint and compulsion 

Nay, coercion, I say? 

How to explain - 

In the damn world

This oppression 

And tyranny of fate? 

- Anwar Nadeem (1937-2017)

(Translated from Urdu by Ghulam Rizvi 'Gardish')