चलो तैयार हो बाज़ार में हर चीज़ मिलती है
हमें अब क्या ज़रूरत है क़लम और काग़ज़ की
भरें दामन में आखिर किस लिए जज़्बात के मोती
हमें फ़ुरसत कहाँ हम थाम लें अपने ख़यालों को
हमें अपनी ज़रूरत की खबर की क्या ज़रूरत है !
कभी घर से निकल कर देखिये बाज़ार का जलवा
हमारी हर ज़रूरत को दुकानें ही तराशेंगी
क़लम को हाथ में लेने से फूटेगी परेशानी
मुबाराकबाद के लिए काग़ज़ को छेड़ें क्यों
ग्रीटिंग कार्ड से आती है तक़रीबात में रौनक़
हमारे मुंतशिर एहसास के ये तर्जुमा ठहरे
हमारे आप के हर ख़्वाब की ताबीर बिकती है
चलो तैयार हो, बाज़ार में हर चीज़ मिलती है
- अनवर नदीम (1937-2017)
1 comment:
लाजवाब बहुत खूब
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