औरत नाम है प्रतीक्षा का,
प्रतीक्षा प्यार की
आदर और सत्कार की।
प्रतीक्षा उस ज़माने की
जो जन्नत को शरमाएगा
जिस की अभिलाषा में
संसार में आँख खोली।
प्रतीक्षा उस मानव आकार की
जो आदमी से इंसान बनने की कोशिश में
अपने सारे जीवन की पूरी शक्ति लगा दे।
स्वर्ग की बातें कहते-सुनते
हमने उसके सपने देखे
धरती के उस पार गगन में
कैसी जन्नत, कैसी दोज़ख़
लाख पते की बात है इतनी
कर्म से अपने फूल खिलेंगे
धरती पर जन्नत महकेगी
नारी का ये जीवन काल
जन्नत का रखता है ख़याल
मानव रचना के पल पल में
आदर्शों के ख़्वाब सजाये
हम नारी की औलादें हैं।
नारी के सपनों की ख़ातिर
इस धरती के हर गोशे को
जन्नत की तस्वीर बना दें।
- अनवर नदीम (1937-2017)
The poem Pratīkshā
pays a tender tribute to woman, who embodies the capacity to wait for love. Her
sense of respect transforms this earth into paradise; and her beauty and bliss
put even paradise to shame. She raises a man from the animal plane to human; and
beckons to heaven with her ideals and dreams thereof. Who has seen heaven or
hell beyond this earth? It is here and here alone that the heavenly fragrance of
feminine grace will suffuse our lives.
- Professor Sarva-Daman Singh, Director, Institute of Asian Studies, Brisbane, Australia
1 comment:
Aaj pahli baar ye nazm padhi
Post a Comment