Friday, August 17, 2018

"राज दुलारे" | अनवर नदीम (1937-2017)



घर आंगन के फूल हैं कितने, कोमल, सुन्दर, भोले-भाले
इन के दम से हंस देता है
दुखिया के संसार का जीवन
ये माटी के पुतले न्यारे
इन पे निछावर प्यार का जीवन

घर आंगन के फूल हैं कितने, कोमल, सुन्दर, भोले-भाले 
ये अपनी तुतली भाषा में
कह जाते हैं प्यार की गाथा
फैल रही है सारे जग में
एक इसी मुस्कान की भाषा

घर आंगन के फूल हैं कितने, कोमल, सुन्दर, भोले-भाले 
ये ममता के राज दुलारे
दीन-धरम के द्वार न जाएं
कोइ भी इन से रूठ न पाए
ये भगवान् को साथ खिलाएं

घर आंगन के फूल हैं कितने, कोमल, सुन्दर, भोले-भाले 
काले-गोरे, उजले-मैले
सब की खुशियों के रखवाले
इन के द्वार से जीवन पाने
सारी दुनिया हाथ पसारे

घर आंगन के फूल हैं कितने, कोमल, सुन्दर, भोले-भाले

(अनवर नदीम)


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