Tuesday, August 14, 2018

"ऐ ज़मीन-ए-वतन ! तू सलामत रहे" | अनवर नदीम (1937-2017)



ऐ ज़मीन-ए-वतन ! तू सलामत रहे
सर ज़मीन-ए -वतन तू सलामत रहे
तुझ को हर साल जश्न-ए -मसर्रत मिले
हर ज़माने में सच्ची मुहब्बत मिले
अपने बेटों से तुझको अक़ीदत मिले
वक़्त पड़ने पर उनकी शुजाअत मिले

ऐ ज़मीन-ए-वतन ! तू सलामत रहे

तुझको हर दौर में भाईचारा मिले
अम्न का शान्ति का नज़ारा मिले
ज़िन्दगी की नयी एक धारा मिले
अज़मत-ो-शादमानी दोबारा मिले

ऐ ज़मीन-ए-वतन ! तू सलामत रहे

पर्वतों पर तुझे पाक सांसें मिलें
जंगलों में अछूती फ़ज़ाएँ मिलें
रेगज़ारों में हस्ती की राहें मिलें
बस्तियों में मसर्रत की शामें मिलें

ऐ ज़मीन-ए-वतन ! तू सलामत रहे

तेरे मासूम बच्चे न सोचें कभी
उनपे तेरी हुकूमत की गोली चली
आदमियत ज़माने में रुसवा हुई
दूर तुझसे हमेशा रहे बेहिसी

ऐ ज़मीन-ए-वतन ! तू सलामत रहे

बदलियां तुझ पे रहमत की छाने लगें
फिर फ़ज़ाएँ तिरी गुनगुनाने लगें
फिर बहारें तिरी मुस्कुराने लगें
तेरे फनकार फिर गीत गाने लगें

ऐ ज़मीन-ए-वतन ! तू सलामत रहे

सब का ईमान, तेरी अमानत रहे
सब का एहसास तेरी हरारत रहे
सब की ज़िंदादिली तेरी ताक़त रहे
तुझ में बाक़ी हमेशा शराफत रहे

ऐ ज़मीन-ए-वतन ! तू सलामत रहे

- अनवर नदीम (1937-2017)
 
 

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