हकीम-ए-अव्वल, हकीम-ए-आख़िर
ज़मीन-ो-आकाश की हदों में
हदों के बाहर की ज़िंदगी में
उसी की बातें हुआ करेंगी
उसी का डंका बजा करेगा !
उसी ने हमको ज़बान दी है
क़लम की दौलत भी दे चुका है
वही मुहाफ़िज़ है ज़िंदगी का
उसी के आगे है सजदा रेज़ी
वही तो सब कुछ अता करेगा !
ख़ुदी का पैकर हक़ीर इंसां
तमाम वहम-ो-गुमां का मालिक
ज़मीं को अपनी समझ रहा था
समझ रहा था कि सारा आलम
उसी के क़ब्ज़े में आ गया है
कभी न बदलेगी ये हक़ीक़त
खुदा की मर्ज़ी रहेगी ग़ालिब
कभी अन्धेरा कभी उजाला
कभी तबाही में शादकामी
न जाने क्या क्या हुआ करेगा !
उसी की चौखट पे आओ बैठो
उसी के आगे ज़बान खोलो
वही तो ज़ख्मों का चारागर है
वही तो रहमत का एक पैकर
वही सुकून-ो-क़रार देगा
तमाम दुनिया की दास्तानें
तमाम दर्द-ो-अलम के क़िस्से
लतीफ़-ो-दिलकश अज़ीम नग़मे
अज़ल से अब तक सुने हैं उसने
वही हमेशा सूना करेगा !
हर एक दिन के हर एक पल में
हमारी साँसों का इम्तिहां है
निज़ाम-ए-हस्ती के इस अमल से
बताओ कोई कहाँ बचा है
बक़ा किसी को नहीं मिली है
बक़ा किसी को नहीं मिलेगे
हमारा ईमां रहे सलामत
वही तो ज़ुल्म-ो-सितम का मरकज़
पलक झपकते फ़ना करेगा !
उसी की हिकमत तराशती है
कसीफ़ दुनिया में ऐसे चेहरे
जो ज़िंदगी को हंसी बनाने की
आरज़ू लेके जी रहे हैं
अगर शरारत भरा रवैय्या
हमारी साँसों के साथ होगा
हमारी दुनिया भी ख़ाक होगी
तुम्हारा घर भी जला करेगा !
हकीम-ए-अव्वल, हकीम-ए-आख़िर
ज़मीन-ो-आकाश की हदों में
हदों के बाहर की ज़िंदगी में
उसी की बातें हुआ करेंगी
उसी का डंका बजा करेगा !
2 comments:
Anwarcha zindabad
Bahtreen
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