कुंजी
चहकार हमारी हस्ती की कुंजी है, फ़क़त इक नाम नहीं
हंस बोल के जीना आता है, मुस्कान हमारी फ़ितरत है।
पैमान-े-वफ़ा बांधा सब से, हर एक के हम दमसाज़ बने
दुन्या के हज़ारों रंगों में इक रंग हमारे नाम का है।
ये मशरिक़ है, वो मग़रिब है, ये बहस बड़ी तूलानी है
तफ़रीक़ किसी सूरत में हमें मंज़ूर नहीं, मंज़ूर नहीं।
हर चीज़ जो अच्छी-सुन्दर है उस चीज़ पे अपनी नज़रें हैं
आज़ाद गगन के पंछी हैं, परवाज़ हमारी आदत है।
चहकार हमारी हस्ती की कुंजी है, फ़क़त इक नाम नहीं
हंस बोल के जीना आता है, मुस्कान हमारी फ़ितरत है।
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