आधार
मेरे सपनों का आधार, मेरे अब्बू के अफ़कार
मुझको पैहम रहना है अपने सपनों में हुश्यार।
जीवन को जीना आसां है, कुछ कर के जीना है दुश्वार
इस आला मक़सद की ख़ातिर, रखना है ख़ुद को तय्यार।
बर्बाद नहीं करना है कभी फुरसत के लम्हों को बेकार
लम्हात की सारी ताक़त से बनता है जीवन भी शाहकार।
मुझको बापू के सपनों के आधार में खुद को ढलना है।
तारीख़ की काली नगरी से सूरज बन के निकलना है।
मेरे सपनों का आधार, मेरे अब्बू के अफ़कार ,
मुझको पैहम रहना है अपने सपनों में हुश्यार।
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