Saturday, September 28, 2019

Anwar Nadeem's 4-year-old grandson Pai'ham Navras' tribute to him



Urdu poet and writer Anwar Nadeem's four-year-old grandson Pai'ham Navras pays tribute to him on his birth anniversary on 22 October 2019 by reciting a poem Nadeem wrote for him. Anwar Nadeem was born in 1937 and passed away on 9 August 2017. He lived in Lucknow, Uttar Pradesh, India. The poem is as follows:
आधार

मेरे सपनों का आधार, मेरे अब्बू के अफ़कार
मुझको पैहम रहना है अपने सपनों में हुश्यार।
जीवन को जीना आसां है, कुछ कर के जीना है दुश्वार
इस आला मक़सद की ख़ातिर, रखना है ख़ुद को तय्यार।
बर्बाद नहीं करना है कभी फुरसत के लम्हों को बेकार
लम्हात की सारी ताक़त से बनता है जीवन भी शाहकार।
मुझको बापू के सपनों के आधार में खुद को ढलना है।
तारीख़ की काली नगरी से सूरज बन के निकलना है।
मेरे सपनों का आधार, मेरे अब्बू के अफ़कार ,
मुझको पैहम रहना है अपने सपनों में हुश्यार।

Friday, September 27, 2019

Anwar Nadeem's 4-year-old grand-daughter Chahkaar Navras' Tribute to him

Urdu poet and writer Anwar Nadeem's four-year-old grand-daughter Chahkaar Navras pays tribute to him on his birth anniversary on 22 October 2019 by reciting a poem titled "Kunji" that he wrote for her. Anwar Nadeem was born in 1937 and passed away on 9 August, 2017. He lived in Lucknow, Uttar Pradesh, India. The poem is as follows:

कुंजी

चहकार हमारी हस्ती की कुंजी है, फ़क़त इक नाम नहीं
हंस बोल के जीना आता है, मुस्कान हमारी फ़ितरत है।
पैमान-े-वफ़ा बांधा सब से, हर एक के हम दमसाज़ बने
दुन्या के हज़ारों रंगों में इक रंग हमारे नाम का है।
ये मशरिक़ है, वो मग़रिब है, ये बहस बड़ी तूलानी है
तफ़रीक़ किसी सूरत में हमें मंज़ूर नहीं, मंज़ूर नहीं।
हर चीज़ जो अच्छी-सुन्दर है उस चीज़ पे अपनी नज़रें हैं
आज़ाद गगन के पंछी हैं, परवाज़ हमारी आदत है।
चहकार हमारी हस्ती की कुंजी है, फ़क़त इक नाम नहीं
हंस बोल के जीना आता है, मुस्कान हमारी फ़ितरत है।

Saturday, September 7, 2019

"एक सवाल" | अनवर नदीम (1937-2017)



नफ़रतें, ज़ुल्म-ो- सितम, ईसार, क़ुर्बानी, वफ़ा
हर ज़माने का मुक़द्दर बन के सब ज़िंदा रहे 
ज़िन्दगी हम  ने  गुज़ारी या गुज़रना था उसे
चंद रोज़ा सरगिरानी से उतरना था उसे
आदम-ो-हव्वा की ये औलाद भी क्या-क्या सहे
रोज़-ो-शब् बनती रही टकराव की वहशी फ़ज़ा !

मेरे घर आंगन पे है इस्लाम का गहरा असर
फूल से बच्चों के सारे नाम हैं अरबीज़दा
और उनके नाम जैसे लोग जब करते हैं वार
क़त्ल-ो-ग़ारत, आग, अंगारे, धुंआ, चीख़-ो-पुकार
और बन जाता है ये गुलज़ार इक ज़ुल्मतकदा
नस्ल-े-नौ पर पड़ रहा है देखिये कैसा असर !

मेरे बच्चों को ख़बर है नाम के प्रभाव की
उस का इक हमनाम दहशतगर्द कैसे बन गया
एक अच्छा नाम मुल्क-ो-क़ौम का रहज़न बना
अम्न का तहज़ीब का इक़दार का दुश्मन बना
और इस उलझन में इक मासूम का बचपन गया
राह निकले भी तो कैसे प्यार के बर्ताव की

- अनवर नदीम (1937-2017)

Friday, September 6, 2019

"परवेज़, ग़नी, मुश्ताक़ ! सुनो !" | अनवर नदीम (1937-2017)



परवेज़, ग़नी, मुश्ताक़ ! सुनो
ये बात तुम ही से कहना है

ये दुनिया आड़ी, तिरछी है, ये दुनिया दुःख की नगरी है
बेचैन यहां इक तुम ही नहीं पाबन्द-ए-फ़गां इक तुम ही नहीं
क्या ग़ालिब, क्या इक़बाल मियाँ हर दानिशवर बेहाल मियां
तुम दिल में झांको, देखो तो कुछ दाग़ मिलेंगे, समझो तो

परवेज़, ग़नी, मुश्ताक़ ! सुनो
ये बात तुम ही से कहना है

दुनिया को बनाने वाले ने धरती को सजाने वाले ने
आमाल का रुख़  किया कुछ बन्दों ने बरदाद किया
जब चोट लगी तो सोच लिया सुख चैन सभी का लूटेंगे
मज़लूम हुए तो ठान लिया हर ज़ालिम का सर तोड़ेंगे
इक पत्थर सर को छेड़ गया वहशत का मौसम हाथ आया 
बस बदले की काली आंधी , अफ़सोस बनी जीवन साथी

परवेज़, ग़नी, मुश्ताक़ ! सुनो
ये बात तुम ही से कहना है

इंसाफ़ का मतलब ये तो नहीं बदले का गुज़र हो जाए कहीं
बदले का जुनूं क्यों राज करे संसार को यूँ ताराज करे

परवेज़, ग़नी, मुश्ताक़ ! सुनो
ये बात तुम ही से कहना है

टीपू से लेकर गाँधी तक इस देश पर मरने वालो की
तारीख़ बहुत ही रोशन है तारीख़ के रोशन पन्नों से
क्यों नाम तुम्हारा ख़ारिज है ! क्यों नाम तुम्हारा ख़ारिज है !

परवेज़, ग़नी, मुश्ताक़ ! सुनो
तुम पर भी जवानी आयी थी 
और ख़ून की गर्मी बोली थी
तुम भी तो घर से निकले थे
तुम ने भी लड़ाई छेड़ी थी !
लेकिन वो लड़ाई कैसी थी
तारीख़ के रोशन पन्नों से
क्यों नाम तुम्हारा ख़ारिज है

परवेज़, ग़नी, मुश्ताक़ ! सुनो
ये बात तुम ही से पूछेंगे
ये बात तुम ही से पूछेंगे

- अनवर नदीम (1937-2017)

"तौहीन" | अनवर नदीम (1937-2017)
















अल्लाह एक है
और मुहम्मद उस के रसूल हैं
इस पैग़ाम को
दिलों में समाना था !
मगर अफ़सोस
कुछ लोगों ने
इसी सच्चाई को
तलवार के नंगे बदन पर
लिख कर
अपने खुदा
और रसूल की तौहीन की है !

- अनवर नदीम (1937-2017)