Saturday, March 25, 2023

आज़ाद वतन बेदार रहे


इक बात हमें भी कहना है, आज़ाद वतन के लोगों से 

मज़दूरों से, बंजारों से, फनकारों से, बेचारों से 

इस देश के चप्पे चप्पे पर जब खून बहाया ग़ैरत ने 

जब ज़ुल्म से टक्कर लेने का तूफ़ान उठाया ग़ैरत ने 

जब बूढ़ी नस्लें चीख पड़ीं, जब कमसिन बच्चे जाग उठे 

जब बेजां पत्थर बोल उठे, जब नाज़ुक शीशे जाग उठे 

बाज़ार में जब बेदारी थी, जब खेतों में चिंगारी थी 

आज़ाद वतन के ख़्वाबों की हर पैकर में सरशारी थी 

हर जज़्बा जब खुदगर्ज़ी का, जीने की तड़प खो जाता था 

आँचल से परचम बनते थे, तलवार, क़लम हो जाता था 

जब दौलत, इज़्ज़त, शोहरत को ठोकर पे मारा लोगों ने

आज़ाद वतन की चाहत में जब मौत को चूमा लोगों ने 

जब आज़ादी की नेमत ही इस जीवन का आधार हुई

तब आज़ादी के सपनों की रंगी दुनिया साकार हुई 

पर जान से प्यारी आज़ादी, तारीख़ का सीधा मोड़ नहीं 

इस जान से प्यारी नेमत का संसार में कोई जोड़ नहीं 

आज़ाद वतन आबाद रहे, खुशहाल रहे, बेदार रहे 

चौपाल कहे, सरकार सुने, घर बार बसे, बाज़ार सजे 

इक बात हमें भी कहना है आज़ाद वतन के लोगों से 

मज़दूरों से, बंजारों से, फ़नकारों से, बेचारों से 

- अनवर नदीम (1937-2017)