Wednesday, October 9, 2019

"हर दौर में ज़िन्दा रहना है" | अनवर नदीम (1937-2017)

धरती का मुक़द्दर खोटा है, जन्नत का उतरना मुश्किल है
ये बात समझ में आ जाए तो सांस का लेना आसां हो
तूफ़ान बदन की अंदर है, लगता है मिटा के रख देगा
ये दुनिया हम पर हंसती है क्या ख़्वाब अछूता देखा है
बस ख़्वाब हमारा अपना है, इस ख़्वाब को ज़िन्दा रखना है
और ख़्वाब इशारा करता है दुनिया को बदल के रहना है
मैं ज़ुल्म-ो-सितम की दुनिया में रहता हूँ, रहूँगा सदियों तक
हाँ मेरी ज़बां कट जाएगी, ये बात मगर लाफ़ानी है
हर दौर में कुचला जाऊंगा, हर दौर में मारा जाऊंगा,
जब होंट हिलेंगे, कानों तक पैग़ाम यही तो जाएगा,
सच बोल के मरने वालों को, हर दौर में ज़िन्दा रहना है
हर दौर में ज़िन्दा रहना है सच बोल के मरने वालों को !

-अनवर नदीम (1937-2017)

Tuesday, October 8, 2019

"एक जीवन गाथा" | अनवर नदीम (1937-2017)


"ईश्वर के मुँह से ब्राह्मण
उस के बाज़ुओं से क्षत्रिय
उस की रानों से वैश्य
और उस के तलवों से शूद्र
का जीवन उभरता है"

तास्सुब, शरारत और सियासत के
ख़तरनाक गठजोड़ ने
इस क़ौल-े-सियाह को तराशा था !

और जहालत का वही घनघोर अन्धेरा
उन्नीसवीं सदी की आख़िरी दहाई
पर भी तारी था। 

एक नाज़ुक मिज़ाज बच्चे की हिस्सियत
नाइंसाफ़ियों के सारे तमाशे 
देख रही थी। 
उस का लड़कपन
किसी इन्किलाबी रवय्ये को
तराशने में मसरूफ़ था
और उसकी जवानी
अपनी तमामतर शक्तियों के साथ
बीसवीं सदी को
यकसर बदल डालने के लिए
बेताब थी। 
फिर बहुत ही सुन्दर नतीजे का
सूरज उभरने लगा
नयी फ़िक्र-ो-अमल के
भारी क़दमों तले
हज़ारों बरस पुरानी परम्पराएं
अपने अंत की और
बढ़ने लगीं। 
होली और दिवाली के पीछे
खड़ी कहानियों ने
हक़ीक़त का रूप धार लिया
बुराइयों के अन्धकार पर
नेक जज़्बों का उजाला
बिखरने लगा
और हिन्दोस्तान के हाथों में
शरीफ़ ज़ाब्तों का दस्तूर
जगमगाने लगा
और बाबा साहब अम्बेडकर की
उभरती, गूंजती जय जय कार
सारी दुनिया का ध्यान
अपनी और खींचने लगी !

- अनवर नदीम (1937-2017)