Thursday, October 27, 2022

अनवर नदीम प्रकाशक की भूमिका में



अनवर नदीम साहब ने प्रकाशन के मैदान में भी किरदार अदा किया।  आपने हमलोग पब्लिशर्स की बुनियाद रक्खी, जिसके ज़ेरे एहतमाम (तत्वावधान में) कई उर्दू किताबें प्रकाशित कीं, नस्र (गद्य) और शाइरी (काव्य) दोनों की, उर्दू और देवनागरी, दोनों ही लिपियों में।  डाइजेस्ट (digest) की शक्ल में एक अदबी जरीदा (journal) भी निकाला, जिसके आप खुद मुदीर थे।  जरीदा ज़खीम और शानदार था पर उसका दूसरा शुमारा कभी मंज़र-ए-आम पर ना आ सका।  जरीदे का नाम था अदबी चौपाल ।  


दिलचस्प बात ये है कि आपने जितनी किताबें प्रकाशित की वो सब खुद आपकी थीं सिवाए एक के। अस्ल में अनवर नदीम साहब कारोबारी ज़हन रखते ही नहीं थे।  वो इकलौती किताब जो आपकी नहीं थी पर जिसे आपने हमलोग पब्लिशर्स के तहत शाया (प्रकाशित) किया साग़र मेहदी का शेरी मजमुआ (काव्य संग्रह) दिवांजलि था।


उस किताब में आपने साग़र मेहदी का जो ख़ाका खींचा वो मुलाहिज़ा फरमाएं:

न क्लर्क है, न ठेकेदार; न स्मगलर है, न व्यापारी, न सियासी कीड़ा, न समाज सुधारक; न बूढ़ा, न बेहिस; न मन से कोमल, न तन से निर्बल! टीचर है - बोझल-बुज़दिल, मगर खुद को आज़ाद समझने वाले समाज का ! शाइर है - जंगों, नफ़रतों और हिमाक़तों की राह पर दौड़ती, भागती बीसवीं सदी का ! सांस लेता है आज के कड़वे युग में - मगर बातें करता है मीठी-मीठी ! कभी सोचता है तो ग़ज़ल की पुरानी ज़बान में।  अपने चेहरे पर उदासी को बरतने में कामयाब - ज़रीफ़ भी है और भावुक भी - फ़नकार है - मज़दूर है शब्दों का - मगर अपने लिए शब्दों की नई फ़स्ल काटने से डरता है।  उर्दू शेर-ओ-अदब के कल और आज से वाक़िफ़; माज़ी के लिए बे-अदब और हाल के लिए पुर-शौक़ - मगर लफ़्ज़ों को अपने एहसास का रंग देने में अभी तक नाकामयाब ! काश उसकी रचना-शक्ति अपने पैरों पर खड़ी हो सके ! 

साग़र मेहदी 

 

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