Saturday, August 25, 2018

"बाल गोपाल की अज़मतों को सलाम" | अनवर नदीम (1937-2017)





मिरी मुहब्बत , मिरी अक़ीदत, मिरे तसव्वुर की चंद कलियाँ
अभी खिली हैं, महक रही हैं , मिरे कृष्णा! क़बूल कर ले

सफीर--शुजाअत , अनुराग वाला
वो ज़ुल्म--सितम के लिए आग वाला
वो बंसी बजैया, शरारत की धारा
वो चितचोर सारे जहां का दुलारा

उसी के जन्म की घडी रही है
बड़ी खूबसूरत फ़ज़ा छा रही है
चलो आज कर लें उसी का नज़ारा !

बालपन की हदों से जवानी तलक
हर ज़माना तहय्युरमआबी का है
जब ज़बां खोलता है तो लगता है ये
हर इशारा तग़य्युरमआबी का है

बाल गोपाल की अज़मतों को सलाम
इस्लाम को सपने में बसाये हुए "हसरत"
रखते थे कन्हैया के रवैय्यों से अक़ीदत

वो शाइर-दरवेश-सिफ़त ताज नगर का
हासिल थी उसे मेरे कृष्णा की मुहब्बत

बाल गोपाल की अज़मतों को सलाम

क्या ख़ूब था गोपाल के बचपन का तमाशा
माखन के बहाने से बना चोर कन्हैया
मुंह खोल के दुनिया को दिखाया था अजूबा
मासूम शरारत में रसूलों का रवैय्या !

देखा है सदा आपने सूरज को उभरते
हम ने तो हमेशा यही महसूस किया है
धरती को अंधेरों से करेगा यही आज़ाद
गोपाल के किरदार की तस्वीर है सूरज

बस्ती बस्ती, द्वारे द्वारे, झांकी कृष्ण कन्हैया की
"ख़ल्क़ख़ुदा की देखन आई" मीर का फ़िक़रा याद करो

एक यही पैग़ाम सुनहरा, भारत वर्ष के दर्शन का
"कृष्णा, कृष्णा" कहते कहते अपने मन को शाद करो

ज़मीन--आकाश की हदों में जहां भी देखो मैं डोलता हूँ
तमाम फ़िक्र--अमल की गिरहें, अज़ल से अब तक मैं खोलता हूँ
बहुत सवेरे, वो कौन मेरे, क़रीब आके, ये कह गया है
"मैं हर्फ़--आख़िर कहाँ से लाऊँ, मैं हर ज़माने में बोलता हूँ"

झलकियां -फ़िक्र--नज़र की अष्टमी की राह में
अनवर--ख़स्ता की काविश कृष्ण की इक चाह में
पेश करके रूह मेरी हो चुकी है शादमां
दिल को सब कुछ मिल गया आप की इस वाह में !

(अनवर नदीम)

2 comments:

we4prithvi said...

Bahut khoob utaari hain jhaaki manmohan bal gopal ki...
Balhaari jaau mein oose pr,pr( on reading) panktiyaan (lines) aap ki...

Unknown said...

Charansparsh uncle The best lines I ever read pn kanha