Saturday, June 19, 2021

"दर्द का मरहम" | अनवर नदीम (1937-2017)



यादें मीठी भी होती हैं 

यादें कड़वी भी होती हैं 

यादें जी बहला सकती हैं 

यादें मन तड़पा सकती हैं 

यादें हम को डस लेती हैं 

यादें अमृत भी लाती हैं 


जीवन के पेचीदा रिश्ते 

कांटे, पत्थर, जटियल, मैदां 

बोझल पैकर, ज़ख़्मी रूहें 

ख़ून ख़राबा, ठोकर, चोटें 

मंज़िल ऐसा प्यारा सपना 

जिस पर सारी दुनिया मरती 

सब की मंज़िल अब तक ओझल 

फिर भी इस की चाहत बेकल 


ओझल मंज़िल की राहों में 

ज़ख़्मी, चोटों के जंगल में 

यादों के मरहम से शायद 

मन के गहरे घाव भरेंगे ! 


यादें मीठी हो सकती हैं 

मरहम भी ठंडा होता है 

यादें कड़वी हो सकती हैं 

मरहम भी कुछ लग सकता है !


- अनवर नदीम (1937-2017)


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